“खुद को नई चाल दो”
शक्तिपुंज (शक्ति का भण्डार) हो अनंत भीरुता (डर) निकाल दो,
डग मगा रहा हृदय तो धीरता (सब्र) विशाल दो,
शिथिल (ढीले-ढाले) तन को मन की स्फूर्ती कमाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
डग मगा रहा हृदय तो धीरता (सब्र) विशाल दो,
शिथिल (ढीले-ढाले) तन को मन की स्फूर्ती कमाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
आखिरी हो श्वांस पर मन मे ये विश्वास हो,
हे मनुज तुम इस धरा की सौम्य (शांत -सुन्दर) स्वप्न आश हो,
भटकते हुए मन को झटक के सम्भाल दो,
ठेल कर तिमिर (अन्धकार) हृदय का ठोंक करके टाल दो,
अग्नि दीप्ति (तेज) सूर्य हो प्रकाश को उछाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
हे मनुज तुम इस धरा की सौम्य (शांत -सुन्दर) स्वप्न आश हो,
भटकते हुए मन को झटक के सम्भाल दो,
ठेल कर तिमिर (अन्धकार) हृदय का ठोंक करके टाल दो,
अग्नि दीप्ति (तेज) सूर्य हो प्रकाश को उछाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
जब कभी एकांत आके तुमको है घेरता,
अस्तित्व खुद का तुमको ही आँखे तरेरता (घूरता),
कमतरी का बोध आके कानों में पुकारता,
जब तुम्हें समय तुम्हारे हाल में ही मारता,
हिय (ह्रदय) में व्याप्त वेदना को मृत्यु तुम अकाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
अस्तित्व खुद का तुमको ही आँखे तरेरता (घूरता),
कमतरी का बोध आके कानों में पुकारता,
जब तुम्हें समय तुम्हारे हाल में ही मारता,
हिय (ह्रदय) में व्याप्त वेदना को मृत्यु तुम अकाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
जब तुम्हारे लोग सर्प बन करके डस रहे,
तालियों को पीट कर तुम पर ही हँस रहे,
रक्त तप्त (गरम) हो स्वयं के खून को उबाल दो,
हौसलों की आग फूँक जीत की मशाल दो,
जरा हो जिजीविषा (जीवन) तो मृत्यु को खँगाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
तालियों को पीट कर तुम पर ही हँस रहे,
रक्त तप्त (गरम) हो स्वयं के खून को उबाल दो,
हौसलों की आग फूँक जीत की मशाल दो,
जरा हो जिजीविषा (जीवन) तो मृत्यु को खँगाल दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
तुम अदम्य (अजेय) साहसी हो सत्य की पुकार हो,
तुम ही एक मात्र खुद की जिंदगी के सार हो,
बेड़ियों को काट दे जो तीक्ष्ण (तेज) तुम कृपाण (तलवार) हो,
धधकती हुयी धमक हो जीत का प्रमाण हो,
सिंह (शेर) हो गहन में खुद की गर्जना विकराल (भयानक) दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
तुम ही एक मात्र खुद की जिंदगी के सार हो,
बेड़ियों को काट दे जो तीक्ष्ण (तेज) तुम कृपाण (तलवार) हो,
धधकती हुयी धमक हो जीत का प्रमाण हो,
सिंह (शेर) हो गहन में खुद की गर्जना विकराल (भयानक) दो,
लड़खड़ा रहे कदम तो खुद को नई चाल दो।
विद्यार्थियों के लिए एक प्रेरक कविता
Reviewed by कहानियाँ हिंदी में
on
September 08, 2020
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